भींडर। नगर की सड़कों पर आवारा गायों की समस्या अब विकराल रूप ले चुकी है। हर रोज़ शहर के मुख्य मार्गों पर एक ही दृश्य सामने आता है—सड़क के बीचोंबीच बैठी आवारा गायें और जाम में फंसे वाहन। जिस गाय को हम माता मानकर पूजते हैं, वही गाय दूध देना बंद करते ही पशुपालकों द्वारा बेसहारा छोड़ दी जाती है। यह स्थिति न केवल ट्रैफिक व्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर रही है, बल्कि आए दिन दुर्घटनाओं का कारण भी बन रही है। राहगीरों और विद्यार्थियों को स्कूल-कॉलेज जाने में भारी परेशानी उठानी पड़ रही है, वहीं वाहन चालकों को हर समय दुर्घटना का भय सताता रहता है।
धार्मिक मान्यताओं और वास्तविकता का विरोधाभास
स्थानीय लोगों का कहना है कि जब तक गाय उपयोगी रहती है, उसे घर में रखा जाता है और जैसे ही वह दूध देना बंद कर देती है, उसे सड़कों पर छोड़ दिया जाता है। इस अमानवीय और गैर-जिम्मेदाराना रवैये के लिए पशुपालकों पर कठोर कार्यवाही की मांग लगातार उठ रही है। धार्मिक दृष्टिकोण से भी यह स्थिति बेहद विडंबनापूर्ण है। हिंदू संस्कृति में गाय को ‘माता’ का दर्जा दिया गया है, लेकिन व्यवहार में उसकी उपेक्षा हमारी आस्थाओं और मान्यताओं के विपरीत है। भींडर जिला बनने की ओर अग्रसर है, ऐसे समय में अपेक्षा की जाती है कि नगर की बुनियादी समस्याओं का समाधान प्राथमिकता से किया जाए। दुर्भाग्यवश, अब तक समाज, नगर पालिका और प्रशासन ने इस गंभीर मुद्दे पर कोई ठोस पहल नहीं की है।
भींडर में गोशाला की आवश्यकता
आज भींडर के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता एक सुसज्जित और व्यवस्थित गौशाला की है, जहाँ इन बेसहारा गायों को सुरक्षित आश्रय मिल सके। इससे न केवल सड़कों पर जाम और दुर्घटनाओं में कमी आएगी, बल्कि शहर की स्वच्छता और यातायात व्यवस्था में भी सुधार होगा। समाज, पालिका और प्रशासन यदि मिलकर गंभीरता से पहल करें, तो “गौ माता” का सम्मान सार्थक होगा और भींडर एक स्वच्छ, सुरक्षित और अनुशासित नगर के रूप में मिसाल कायम करेगा।
👉 यह सही समय है जब प्रशासन, समाजसेवी संस्थाएँ और जागरूक नागरिक मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाएँ और भींडर को आवारा पशुओं की समस्या से निजात दिलाएँ।
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