भींडर, 7 सितम्बर – गणेशोत्सव के पावन अवसर पर कल शाम 6 बजे भींडर रावली पोल से गणपति विसर्जन की भव्य शोभायात्रा निकाली गई। धार्मिक उत्साह और श्रद्धा से सराबोर इस यात्रा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु, सामाजिक संगठन और नगरवासी शामिल हुए।
✨ भव्य झांकियों ने खींचा ध्यान
शोभायात्रा का मुख्य आकर्षण विविध धार्मिक झांकियाँ रहीं। इनमें नृसिंह अवतार, बाहुबली हनुमान, हिरण्यकश्यप व भक्त प्रह्लाद की झांकियों ने श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। धार्मिक कहानियों पर आधारित इन प्रस्तुतियों ने न केवल भक्तों का मनोरंजन किया बल्कि सनातन परंपरा और संस्कृति का भी संदेश दिया।
🎶 ढोल-ताशों और ऊँट गाड़ी पर सवार गणपति
यात्रा में उज्जैन से आए कलाकारों द्वारा बजाए गए ढोल-ताशों ने माहौल को भक्तिमय और उल्लासपूर्ण बना दिया। शोभायात्रा में विशेष आकर्षण रहा ऊँट गाड़ी पर सवार गणपति जी का स्वरूप, जिसने श्रद्धालुओं का मन मोह लिया।
🚩 नगर के प्रमुख मार्गों से गुज़री यात्रा
शोभायात्रा रावली पोल से प्रारंभ होकर आंबेडकर मार्ग, गायत्री चौक, मोचीवाड़ा, श्रीधर मंदिर होते हुए नरसिंह मंदिर से होकर सूरजपोल पहुँची। पूरे मार्ग पर श्रद्धालुओं ने स्वागत द्वार सजाए और फूलों की वर्षा कर भगवान गणपति का अभिनंदन किया।
📰 नृसिंह लीला और हिरण्यकश्यप वध का मंचन
गणपति विसर्जन शोभायात्रा जब सूरजपोल पहुँची तो वहाँ एक विशेष धार्मिक मंचन प्रस्तुत किया गया। इसमें श्री नृसिंह भगवान की लीला और हिरण्यकश्यप वध का सजीव चित्रण हुआ, जिसे देखकर श्रद्धालु भावविभोर हो उठे और वातावरण जयकारों से गूँज उठा।
सूरजपोल पर बनाए गए मंच पर पौराणिक कथा के अनुसार दृश्य जीवंत किया गया। खंभ (स्तंभ) को चीरकर भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार धारण किया – जिसमें वे आधे सिंह और आधे मानव रूप में प्रकट हुए। इसके बाद भगवान ने दुष्ट असुर राजा हिरण्यकश्यप का वध किया। इस नाट्य प्रस्तुति में भक्त प्रह्लाद की भक्ति और अटूट विश्वास को भी दर्शाया गया, जिसने दर्शकों को भावुक कर दिया।
🕉️ नृसिंह अवतार और हिरण्यकश्यप वध का धार्मिक महत्व
यह प्रसंग भगवान विष्णु के चौथे अवतार – नृसिंह अवतार से जुड़ा है। कथा के अनुसार असुर राजा हिरण्यकश्यप को वरदान प्राप्त था कि उसका वध न तो किसी मनुष्य द्वारा हो सकता था और न किसी पशु द्वारा; न दिन में और न रात में; न धरती पर और न आकाश में; न किसी अस्त्र से और न किसी शस्त्र से। इस वरदान के कारण वह अहंकारी हो गया और उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की भक्ति पर रोक लगा दी।
उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और सदैव “नारायण-नारायण” का जाप करता था। जब हिरण्यकश्यप ने उससे पूछा कि तेरा भगवान कहाँ है, तो उसने उत्तर दिया – “सर्वत्र है।” इस पर क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने खंभ पर प्रहार किया और उसी क्षण भगवान विष्णु नृसिंह रूप में प्रकट हुए। संध्या समय (जो न दिन था, न रात), चौखट पर (जो न धरती थी और न आकाश), और अपने नखों (जो न अस्त्र थे और न शस्त्र) से भगवान ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।
इस लीला का संदेश यही है कि भक्ति और सत्य हमेशा विजयी होते हैं, चाहे अधर्म कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो। भगवान सदैव अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं। यही कारण है कि यह प्रसंग आज भी आस्था, धर्म और भक्ति का अमर प्रतीक है।
🙏 आस्था और उत्साह का संगम
इस शोभायात्रा ने एक बार फिर यह साबित किया कि गणेशोत्सव केवल आस्था का पर्व नहीं बल्कि सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का भी प्रतीक है।
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