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भींडर सूरजपोल पर मजदूर मेला: रोजी-रोटी का संगम और एकता का संदेश

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भींडर शहर का सूरजपोल हर रोज एक खास दृश्य का गवाह बनता है। यहाँ प्रतिदिन सुबह सैकड़ों मजदूर—पुरुष और महिलाएँ—एकत्रित होते हैं। ये मजदूर भींडर कस्बे के साथ-साथ आस-पास के गाँवों से आते हैं और अपने श्रम के बल पर जीवनयापन करते हैं।

रोजी-रोटी की तलाश का ठिकाना

सुबह होते ही सूरजपोल पर बड़ी संख्या में मजदूर काम की उम्मीद लेकर पहुंचते हैं। कोई निर्माण कार्य में दक्ष है, कोई खेतिहर मजदूरी में, तो कोई घरेलू काम या अन्य मेहनत-मजदूरी में हाथ बंटाने को तैयार रहता है। यहाँ आने वाले ठेकेदार, किसान और व्यापारी अपनी आवश्यकता के अनुसार मजदूरों को लेकर जाते हैं। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और आज भी मजदूर वर्ग की आजीविका का महत्वपूर्ण आधार बनी हुई है।

महिला श्रमिकों की भागीदारी

इस मेले की खासियत यह भी है कि इसमें पुरुषों के साथ महिलाएँ भी बड़ी संख्या में मौजूद रहती हैं। महिलाएँ घर-परिवार की जिम्मेदारी निभाने के साथ-साथ मजदूरी कर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को संभालने में बराबरी से योगदान देती हैं। यह दृश्य महिला सशक्तिकरण और श्रम की समानता का प्रतीक है।

संगठन और एकता का संदेश

भींडर सूरजपोल पर लगने वाला मजदूर मेला केवल रोजगार का साधन नहीं है, बल्कि यह सामाजिक एकता और संगठन की ताकत को भी दर्शाता है। रोजाना एक स्थान पर इकट्ठा होना श्रमिकों की सामूहिक शक्ति का प्रतीक है। यह मेला समाज को यह संदेश देता है कि श्रम ही सबसे बड़ी पूंजी है और सामूहिकता से ही समाज का विकास संभव है।

चुनौतियाँ भी कम नहीं

हालांकि इस मेले से मजदूरों को रोजगार का अवसर मिलता है, लेकिन इनके सामने कई चुनौतियाँ भी हैं—जैसे असंगठित मजदूरी, तय वेतन का अभाव, मौसम की मार और श्रमिक सुरक्षा से जुड़ी दिक्कतें। इन समस्याओं का समाधान तभी संभव है जब श्रमिक वर्ग को योजनाबद्ध तरीके से संगठित किया जाए और सरकार तथा समाज दोनों मिलकर इन्हें सहयोग दें।

निष्कर्ष

भींडर सूरजपोल का मजदूर मेला केवल काम खोजने का स्थल नहीं है, बल्कि यह मेहनतकश लोगों की जीवटता और संघर्षशील जीवन का प्रतीक है। यहाँ रोजाना जुटने वाले मजदूर हमें यह सिखाते हैं कि एकता, मेहनत और संगठन ही जीवन को सार्थक बनाने के वास्तविक साधन हैं।

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