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पर्यावरण हितैषी गणेशोत्सव: भींडर के पास पश्चिमी बंगाल के विशेष मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा स्थापित हुई

भींडर। जहाँ एक ओर कई गाँवों में गणेशोत्सव के दौरान पीओपी (प्लास्टर ऑफ पेरिस) से बनी मूर्तियों का चलन बढ़ रहा है, वहीं भींडर के पास स्थित हमेरपुरा गाँव ने इस वर्ष एक अनूठी पहल कर पर्यावरण संरक्षण की मिसाल पेश की है। श्री परशुराम युवा मित्र मंडल ने 2025 का गणेशोत्सव पूरी तरह से पर्यावरण अनुकूल (eco-friendly) तरीके से मनाया, जिसकी सराहना पूरे क्षेत्र में हो रही है।

पीओपी से बनी प्रतिमा पर्यावरण को खतरा 

आजकल पीओपी से बनी मूर्तियों को लोग ज्यादा पसंद करते हैं। ये मूर्तियां दिखने में आकर्षक होती हैं, लेकिन पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक हैं। जब इन्हें जल में विसर्जित किया जाता है, तो ये कई महीनों तक पानी में घुलती नहीं हैं, जिससे जल प्रदूषण तेजी से बढ़ता है। इसके अलावा, इन मूर्तियों में इस्तेमाल होने वाले रंग जैसे सीसा, कैडमियम, पारा और आर्सेनिक जैसे जहरीले भारी धातु पानी में मिलकर जलीय जीवन के लिए खतरा पैदा करते हैं। ये रसायन पानी की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।

इन सब चिंताओं को समझते हुए, हमेरपुरा गाँव के श्री परशुराम युवा मित्र मंडल ने इस वर्ष गणेशोत्सव को पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए मनाया। उन्होंने ऐसी गणेश प्रतिमा की स्थापना की जो मिट्टी से बनी थी और पूरी तरह से प्राकृतिक रंगों से सजाई गई थी। इससे न सिर्फ धार्मिक आस्था का सम्मान हुआ, बल्कि प्रकृति का भी ख्याल रखा गया।

सुंदरबन की मिट्टी से बनी प्रतिमा की स्थापना 

हमेरपुरा निवासी और हस्तशिल्प का काम करने वाले रमणीक चौबीसा ने बताया कि उन्होंने काफी शोध करने के बाद यह निर्णय लिया। उनके प्रस्ताव को गांव वालों ने भी तुरंत स्वीकार कर लिया। इसके बाद, गणेश प्रतिमा को उदयपुर के कुमारों के भट्टे से लाया गया।

इस प्रतिमा की सबसे खास बात यह थी कि यह पश्चिमी बंगाल के सुंदरबन की पवन गंगा जी की विशेष मिट्टी से बनी थी।  जो विसर्जन के बाद कुछ ही समय में जल में विलंय हो जाती है  यह मिट्टी न सिर्फ पवित्र मानी जाती है, बल्कि इसका उपयोग पर्यावरण के लिए भी बेहद सुरक्षित है।

बेनर के साथ ग्राम में निकला जुलुस 

ग्राम में गणेशोत्सव बड़े ही उत्साह और पारंपरिक श्रद्धा के साथ मनाया गया। इस बार मंडल ने विशेष पहल करते हुए ECO-FRIENDLY GANESHOTSAV का आयोजन किया।

मंडल के सदस्यों ने बैनर लेकर पूरे गाँव में जुलूस निकाला और लोगों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। उनका कहना था कि गणेशोत्सव केवल धार्मिक आस्था का नहीं बल्कि प्रकृति के प्रति सम्मान और जिम्मेदारी निभाने का पर्व भी होना चाहिए।

गणेश प्रतिमा की स्थापना से लेकर विसर्जन तक हर चरण में पर्यावरण का ध्यान रखा गया। मिट्टी से बनी प्रतिमाओं का उपयोग किया गया जो विसर्जन के बाद पानी में घुल जाती हैं और जल प्रदूषण को रोकने के साथ-साथ जलीय जीवन की सुरक्षा भी सुनिश्चित करती हैं।

यह अनूठी पहल समाज में एक मजबूत संदेश देती है कि हमारी धार्मिक आस्था और परंपराएं प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना भी मनाई जा सकती हैं। यह कदम गणेशोत्सव जैसे बड़े त्योहारों को और भी अधिक सार्थक और जिम्मेदार बनाता है।

पंडाल की सजावट में भी किसी तरह के प्लास्टिक या थर्मोकोल का इस्तेमाल नहीं किया गया। इसके बजाय, सजावट के लिए फूलों, पत्तियों, और पुनर्नवीनीकरण योग्य (recycled) सामग्रियों का उपयोग किया गया। बिजली की खपत कम करने के लिए LED लाइट्स का प्रयोग हुआ। प्रसाद वितरण और अन्य कार्यों में भी प्लास्टिक के बर्तनों की जगह पत्तों से बने दोने और कागज के कप का प्रयोग किया गया, जिससे उत्सव के बाद कचरा बहुत कम हुआ।

मंडल के अध्यक्ष ने कहा, “महादेव जी की कृपा और गाँव के सभी लोगों के सहयोग से ही हम यह ज्योति अखंड रख पाए हैं। हमें खुशी है कि हमने एक ऐसी पहल की है जो न केवल हमारे गाँव के लिए बल्कि अन्य मंडलों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगी।”

हमेरपुरा का यह गणेशोत्सव यह साबित करता है कि अगर इच्छाशक्ति हो तो हम अपनी परंपराओं को बिना पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए भी मना सकते हैं। यह आयोजन सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन बन गया है, जो हमें प्रकृति के साथ हमारे रिश्ते की याद दिलाता है।

 

 

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